Tuesday, September 5, 2017

तमाशा

होने दो तमाशा मेरी भी ज़िन्दगी का,
मैंने भी मेले मैं बहुत तालियाँ बजाई हैं.

Friday, September 1, 2017

ज़ख्म

हिसाब-किताब हम से न पूछ ऐ-ज़िन्दगी
तूने सितम नही गिने, हमने ज़ख्म.

मंज़िल

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा...
--अहमद फ़राज़

ग़म

​ख़ुशी जल्दी में थी  रुकी नहीं,​
​ग़म फुरसत में थे ठहर गए.