Tuesday, September 30, 2014

कि द़म निकल जाये

हर एक लहजा ये ही आरज़ू ये ही हसरत ,
जो आग़ दिल में है वो शायरी में भी ढ़ल जाये ....
अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाये,
अब इस क़दर भी न चाहो कि द़म निकल जाये ....

दिल है किस के पास

माना की नहीं आता मुझे किसी का दिल जीतना
मगर ये तो बताओ यहाँ दिल है किस के पास...

तेरी ख्वाहिश

तेरी ख्वाहिश कर ली तो क्या गुनाह कर लिया

लोग तो इबादत में पूरी कायनात मांग लेते है..

Saturday, September 27, 2014

कुछ और जख्म

ए इश्क...मुझको कुछ और जख्म चाहियें...!!!
अब मेरी शायरी में वो बात नहीं रही...!!

Friday, September 26, 2014

तुझे अपना सोचकर

तू मिले या न मिले ये मेरे मुक़द्दर की बात है ,

सुकून बहुत मिलता है तुझे अपना सोचकर...!! 

Tuesday, September 23, 2014

वक़्त गुज़र जाता है...!!

वक़्त की एक आदत बहुत अच्छी है

जैसा भी हो

गुज़र जाता है...!!

Monday, September 22, 2014

दर्द की कोई इन्तहा

बहुत जुदा है औरो से मेरे दर्द की कहानी..
जख्म का कोई निशान नहीं और दर्द की कोई इन्तहा नहीं....

Saturday, September 20, 2014

वो तो आँखें थी

वो तो आँखें थी, जो सब सच बयां कर गयी ।
वरना लफ्ज होते, तो कब के मुकर गए होते.

Friday, September 19, 2014

“इश्क” मुकम्मल

फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ “इश्क” मुकम्मल,
इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है….!!

Tuesday, September 16, 2014

"वक्त"

एक वोह "वक्त " था जब हम सोचते थे कि हमारा
भी "वक्त " आएगा ...
और
एक यह भी "वक्त" है क़ि हम सोचते है कि वोह भी
क्या "वक्त" था..

Monday, September 15, 2014

तालियाँ बजती रहे

इस शिद्दत से निभा तु अपना किरदार,
कि परदा गिर जाए पर तालियाँ बजती रहे..!

सूखे पत्तों की तरह

सूखे पत्तों की तरह बिखरे थे हम,
किसी ने समेटा भी तो सिर्फ जलाने के लिए

Sunday, September 14, 2014

भीगी बारिश में

भीगी बारिश में हम दोनों ही बेबस थे..
वो ज़ुल्फ़ें ना सँभाल पाई और मैं खुद को..

Thursday, September 11, 2014

खामोश रिश्ते

जब हो थोड़ी फुरसत, तो अपने मन की बात हमसे कह लेना,
बहुत खामोश रिश्ते.... कभी जिंदा नहीं रहते..

Wednesday, September 10, 2014

हसीन इलज़ाम

तोहमतें तो लगती रहीं रोज़ नई नई हम पर....
मगर जो सब से हसीन इलज़ाम था वो तेरा नाम था..

Monday, September 8, 2014

बर्बाद करने के रास्ते

बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़

न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया

Thursday, September 4, 2014

परेशां था

आंसू भरी आँखे लिए घूरता रहा मुझे,
आईने में खड़ा वह शख्श परेशां बहुत था..