नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में,
किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता !
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नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में,
किसी को भूल कर सो जाना, आसान नहीं होता !
तुझे पा ना सके फिर भी सारी जिन्दगीं तुझे प्यार करेगे
ये जरूरी तो नही जो मिल ना सके उसे छोड दिया जाये....
भूले है रफ़्ता-रफ़्ता उन्हे मुद्दतो में हम
किश्तो में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए
आग़ाज़-ए-आशिकी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए
आज आईने के सामने खड़े होकरखुद से माफ़ी मांग ली मैंने ...।।
सबसे ज़्यादा खुद का ही दिल दुखाया है औरों को खुश करने में ...।।।
मुझसे अगर दुश्मनी भी करनी हो तो इरादे मजबूत रखना,
जरा सी भी चूक हो गयी तो मुहब्बत हो जायेगी..
सब कुछ हासिल नहीं होता ज़िन्दगी में यहाँ,
किसी का "काश" तो किसी का "अगर" छूट ही जाता है...!!!
दूरियों का गम नहीं,
गर फासले दिल में न हों,
नज़दीकियां बेकार हैं,
गर दिल में जगह न हो...!
"Don't Lose a True Person In Search of a Perfect Person"
Because Perfection is A Fantasy,
But Truth is always A Reality...
उनके नाम का एक ख़त
कमीज़ की जेब में रख कर चले
जो क़रीब से गुज़रा पूछता है
ये कौन सा इत्र है जनाब।
अपनी यादों से कहो,
इक दिन की छुट्टी दें मुझे,
इश्क के हिस्से में भी,
इतवार होना चाहिये !
शिकायत क्या करू,
ये किस्मत की बात हैं..
आज तेरी सोच में भी मैं नहीं,
आैर मुझे लफ्ज़ लफ्ज़ तू याद हैं..
हाल तो पुंछ लू तेरा पर डरता हूँ आवाज़ से तेरी..
ज़ब ज़ब सुनी हें कमबख्त मोहब्बत ही हुई हें..
हर बार सुलझा कर रखता हूँ
फिर भी उलझी हुई मिलती है
ऐ जिंदगी तू ही बता जरा
तेरा मिजाज मेरे इयरफोन सा क्यूँ है..
सबने ख़रीदा सोना
मैने इक सुई खरीद ली
सपनो को बुनने जितनी
डोरी ख़रीद ली
शौक-ए-ज़िन्दगी
कुछ कम किये
फ़िर सस्ते में ही
सुकून-ए-ज़िंदगी खरीद ली
कल रात भर जलते रहे हम दिए की लौ जैसे,
खुदा जाने उन्हें हिचकियाँ भी आई या नहीं
फिर से मुझे मिट्टी में खेलने दे ऐ जिन्दगी,
ये साफ़ सुथरी ज़िन्दगी, उस मिट्टी से ज्यादा गन्दी है
अतीत के पन्ने पलटकर देखता हूँ तो यक़ीन नहीं कर पाता..
स्याही का रंग उड़ चुका है, कागज़ पीला है और यादें हरी हैं..
तेरी हालत से लगता हैं तेरा अपना था कोई...
वरना इतनी सादगी से तो बर्बाद कोई गैर करता नहीं.....
टुकड़े पड़े थे राह पे किसी हसीना के तस्वीर के...
लगता हे कोई दीवाना आज फिर से समझदार हो गया...
हर एक लहजा ये ही आरज़ू ये ही हसरत ,
जो आग़ दिल में है वो शायरी में भी ढ़ल जाये ....
अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाये,
अब इस क़दर भी न चाहो कि द़म निकल जाये ....
तू मिले या न मिले ये मेरे मुक़द्दर की बात है ,
सुकून बहुत मिलता है तुझे अपना सोचकर...!!
बहुत जुदा है औरो से मेरे दर्द की कहानी..
जख्म का कोई निशान नहीं और दर्द की कोई इन्तहा नहीं....
फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ “इश्क” मुकम्मल,
इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है….!!
एक वोह "वक्त " था जब हम सोचते थे कि हमारा
भी "वक्त " आएगा ...
और
एक यह भी "वक्त" है क़ि हम सोचते है कि वोह भी
क्या "वक्त" था..
जब हो थोड़ी फुरसत, तो अपने मन की बात हमसे कह लेना,
बहुत खामोश रिश्ते.... कभी जिंदा नहीं रहते..
बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया
ना पूछ मेरे सब्र की इंतेहा कहाँ तक हैं,
तू सितम कर ले, तेरी हसरत जहाँ तक हैं,
वफ़ा की उम्मीद, जिन्हें होगी उन्हें होगी,
हमें तो देखना है, तू बेवफ़ा कहाँ तक हैं.
फ़ुर्सतें मिलें जब भी रंजिशें भुला देना .....
कौन जाने सांसों की मोहलतें कहाँ तक है....!!!!!
अब तो अपने 'दिल 'से भी नाता तोड़ लिया हमने ...
'सिरफिरा' तुम्हे भूल जाने की हिदायत दे रहा था !!
बेवक्त बेवजह बेसबब सी बेरुखी तेरी
और फिर भी तुझे बेइन्तहाँ चाहने की बेबसी मेरी...
उन लम्हों की यादें ज़रा संभाल के रखना जो हमने साथ बिताए थे,
क्योंकि हम याद तो आएँगे मगर लौट कर नहीं !
मुस्कुराने की आदत भी कितनी महँगी पड़ी हमको ...
भुला दिया सब ने ये कह कर कि-
"तुम तो अकेले भी खुश रह लेते हो...!!!"
यह कह कर मेरा दुश्मन मुझे हँसते हुए छोड़ गया;
कि तेरे अपने ही बहुत हैं तुझे रुलाने के लिए।
सब कुछ हासिल नहीं होता ज़िन्दगी में
यहाँ किसी का "काश" तो किसी का "अगर"छूट ही जाता है.
उन्हे लगता है उनकी चालाकियां नजर नहीं आती हमें,
हम खामोशी से देखते है उन्हें अपनी नजरों से गीरते हुए...
कुछ अरमान उन बारिश की बूँद की तरह होते है,
जिनको छुने की ख्वाहिश में,
हथेलिया तो गिली होजाती,
पर हाथ हमेशा खाली रह जाते है....
अकेले रहने का भी एक अलग सुकून है,
ना किसी के वापस आने की उम्मीद,
ना किसी के छोड कर जाने का डर..!!
गिरा दे जितना पानी है, तेरे पास ऐ बादल..
ये प्यास किसी के मिलने से बुझेगी, तेरे बरसने से नही..!!
जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं ,
मैंने झूठों को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है …… !!!
रुई का गद्दा बेच कर,
मैंने इक दरी खरीद ली।
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने,
और ख़ुशी खरीद ली ।
.
सबने ख़रीदा सोना,
मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी,
डोरी ख़रीद ली ।
.
मेरी एक खवाहिश मुझसे,
मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने
अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली ।
.
इस ज़माने से सौदा कर,
एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और,
शामें खरीद ली।
.
शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से,
और कुछ कम किये,
फ़िर सस्ते में ही,
सुकून-ए-ज़िंदगी खरीद ली !
इतना भी गुमां न कर अपनी जीत पर ए बेखबर,
शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के है।।
रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;
प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा;
थक कर ना बैठ अए मंजिल के मुसाफ़िर;
मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा।
याद है मुझे मेरे सारे गुनाह,
एक मोहब्बत कर ली,
दूसरा तुमसे कर ली,
तीसरा बेपनह कर ली।
रख हौंसला वो मंज़र भी आएगा;
प्यासे के पास चल के समंदर भी आएगा;
थक कर न बैठ मंज़िल के मुसाफिर;
मंज़िल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा।
'जान जब प्यारी थी, तब दुश्मन हज़ारों थे..
अब मरने का शौक है, तो क़ातिल नहीं मिलते..
बचपन की वोह अमीरी न जाने कहाँ खो गई
वरना बारिश के पानी में हमारे कई जहाज चला करते थे ।
ये दबदबा, ये हुकूमत, ये नशा, ये दौलतें...
सब किरायेदार हैं घर बदलते रहते हैं !!
उन्हें लगता है उनकी चालाकियां हमें समझ
नहीं आती....
हम बड़े आराम से देखते हैं उन्हें अपनी नज़रों से गिरते हुए...
एक तुम भी ना कितनी जल्दी सो जाते हो...
लगता है इश्क को तुम्हारा पता देना पड़ेगा!!!
हमने उतार दिए अब सारे क़र्ज़ तेरी मुहब्बत के...
अब हिसाब होगा तो सिर्फ तेरे दिए हुए जख़मो का...!!!!!
हाथ की लकीरें पढने वाले ने तो, मेरे होश ही उड़ा दिये..!
मेरा हाथ देख कर बोला...
"तुझे मौत नहीं किसी की चाहत मारेगी...!!
लो गुज़र गया यह दिन भी,
अपनी तमाम रौनके ले कर...
...गर ज़िन्दगी ने वफ़ा की;
तो कल फिर सिलसिले होंगे!
दिल से बाहर निकलने का रास्ता तक ना ढूंढ सकी वो,
दावा करती थी जो मेरी रग रग से वाकिफ होने का...l
ये जो मेरे क़ब्र पे रोते है.......
अभी उठ जाऊँ ..तो जीने ना दे.............,
हमारा दुश्मन हमसे बोला
"बहुत महंगी पड़ेगी तुझे दुश्मनी मेरी"
हमने उसको उत्तर ये दिया कि
"सस्ती चीज हम कभी खरीदते ही नहीं"
ख्वाहिश बस इतनी सी है की तुम मेरे लफ्जों को समझो,
आरजू ये नहीं की लोग वाह वाह करे..
एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए ...
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए...
भूले है रफ़्ता-रफ़्ता उन्हे मुद्दतो में हम...
किश्तो में ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए