Wednesday, December 27, 2017

दूरी

मैं दिसंबर तू जनवरी,
रिश्ता नजदीक का,
दूरी सालभर की।

Saturday, December 16, 2017

खुद में, खुद से,

*भीड़ में कहीं खो सी गयी, हस्ती हमारी है..,*

*खुद में, खुद से, खुद को, ढूँढने की जंग जारी है...*

Tuesday, December 12, 2017

दरवाज़े

हर रिश्ता दरवाज़े खोल जाता है,
या तो दिल के, या तो आँखो के...

Friday, December 8, 2017

पुरानी तमन्ना

पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो..
कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी..

Saturday, December 2, 2017

Mind

Your body can stand almost anything. It's your mind that you have to convince.

Thinking

Thinking is difficult, that's why most people judge.

Sunday, November 19, 2017

ग़म

ग़म तो जनाब फ़ुरसत का शौक़ है,

ख़ुशी में वक्त ही कहाँ मिलता है।

चुभते है

टूटे तो, बड़े चुभते है;
क्या काँच,क्या रिश्ते...!!!!

Wednesday, November 1, 2017

झूठ

वो पैरवी तो झूठ की करता चला गया,
लेकिन उसका चेहरा उतरता चला गया।

- वसीम बरेलवी

Saturday, October 28, 2017

ख्वाहिशें

हमारी ख्वाहिशें ही हमारा सुकून निगल गई,
और शिकायत हम किस्मत से कर रहे है।

Tuesday, October 24, 2017

गुस्ताखियां

एक उम्र गुस्ताखियों के लिये भी नसीब हो...

ये ज़िंदगी तो बस अदब में ही गुज़र गई..!

उम्र की ऐसी की तैसी..!

घर चाहे कैसा भी हो..
उसके एक कोने में..
खुलकर हंसने की जगह रखना..

सूरज कितना भी दूर हो..
उसको घर आने का रास्ता देना..

कभी कभी छत पर चढ़कर..
तारे अवश्य गिनना..
हो सके तो हाथ बढ़ा कर..
चाँद को छूने की कोशिश करना.

अगर हो लोगों से मिलना जुलना..
तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना..

भीगने देना बारिश में..
उछल कूद भी करने देना..
हो सके तो
एक कागज़ की किश्ती चलाने देना..

कभी हो फुरसत, आसमान भी साफ हो..
तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना..
हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना..

घर के सामने रखना एक पेड़..
उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य सुनना..

घर चाहे कैसा भी हो..
घर के एक कोने में..
खुलकर हँसने की जगह रखना.

चाहे जिधर से गुज़रिये
मीठी सी हलचल मचा दिजिये,

उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लिजिये.

ज़िंदा दिल रहिए जनाब,
ये चेहरे पे उदासी कैसी
वक्त तो बीत ही रहा है,

उम्र की ऐसी की तैसी..!

Tuesday, September 5, 2017

तमाशा

होने दो तमाशा मेरी भी ज़िन्दगी का,
मैंने भी मेले मैं बहुत तालियाँ बजाई हैं.

Friday, September 1, 2017

ज़ख्म

हिसाब-किताब हम से न पूछ ऐ-ज़िन्दगी
तूने सितम नही गिने, हमने ज़ख्म.

मंज़िल

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल,
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा...
--अहमद फ़राज़

ग़म

​ख़ुशी जल्दी में थी  रुकी नहीं,​
​ग़म फुरसत में थे ठहर गए.

Sunday, August 27, 2017

मंज़िल

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल ..
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा...
--अहमद फ़राज़

इश्क़

इश्क़ तो मर्ज़ ही बुढ़ापे का है.... ।
जवानी में फुर्सत कहाँ आवारगी से...।।*

ताल्लुक़

उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक़ है फ़राज़,
वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती!

Sunday, April 30, 2017

दिल

गज़ब की धूप है शहर में फिर भी पता नहीं,

लोगों के दिल यहाँ पिघलते क्यों नहीं...!!!

वक़्त

कितने चालाक है
कुछ मेरे अपने भी..

तोहफे में घड़ी तो दी
मगर कभी वक़्त नही दिया..!!

Monday, March 27, 2017

उम्र का तकाज़ा

आज दिल कर रहा था, बच्चों की तरह रूठ ही जाऊँ,पर.

फिर सोचा, उम्र का तकाज़ा है, मनायेगा कौन..

ज़ख्म

हिसाब-किताब हम से न पूछ अब, ऐ-ज़िन्दगी,

तूने सितम नही गिने, तो हम ने भी ज़ख्म नही गिने!

Sunday, February 12, 2017

फिर हुआ इश्क

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने,
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए..!

Thursday, February 9, 2017

किरदार

किरदार शिद्दत से निभाइये ज़िन्दगी में,
कहानी एक दिन सभी को होना है.....!!