Tuesday, September 30, 2014

कि द़म निकल जाये

हर एक लहजा ये ही आरज़ू ये ही हसरत ,
जो आग़ दिल में है वो शायरी में भी ढ़ल जाये ....
अज़ीज़ इतना ही रक्खो के जी संभल जाये,
अब इस क़दर भी न चाहो कि द़म निकल जाये ....

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