Thursday, August 27, 2015

विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते

प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है, वह उदास है, उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है।

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विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते

🌷मैथिली शरण गुप्त 🌷
अट्टालिका पर एक रमिणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नही है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।

🌷काका हाथरसी🌷
गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार
भली करे करतार,न दे दे कोई धक्का
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढना
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पडना।

🌷श्याम नारायण पांडे 🌷
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।

🌷गोपाल दास नीरज🌷
हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा..!
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सुमित्रा नंदन पन्त

स्वर्ण-सौंध के रजत शिखर पर,
चिर नूतन, चिर सुन्दर प्रतिपल,
उन्मन उन्मन, अपलक नीरव,
शशि-मुख पर कोमल कुंतल-पथ,
कसमस-कसमस चिर यौवन घात,
पल पल प्रतिपल,
चल चल करती निर्मल दृग जल,
ज्यों निर्झर के दो नीलकमल,
यह रूप चपल ज्यों धुप धवल,
अतिमौन कौन,
रूपसी बोलो,
प्रिये बोलो ना.


गोपाल प्रसाद व्यास

छत पर उदास क्यूँ बैठी है,
तू मेरे पास चली आ री,
जीवन का सुख-दुःख कट जाए,
कुछ मैं गाऊं, कुछ तू गा री,
तू जहाँ कहीं भी जाएगी,
जीवन भर कष्ट उठाएगी,
यारों के साथ रहेगी तो,
मथुरा के पेड़े खाएगी.



रामधारी सिंह दिनकर

दग्ध ह्रदय में धधक रही,
उत्पात प्रेम की ज्वाला,
हिमगिरी के उत्स निचोड़,
फोड़ पाताल, बनो विकराला,
ले ध्वन्सो के निर्माण त्रान से,
गोद भरो पृथ्वी की,
छत पर से मत गिरो,
गिरो अम्बर से वज्र सरीखी.

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