Monday, July 14, 2014

सुकून-ए-ज़िंदगी खरीद ली !

रुई का गद्दा बेच कर, 
मैंने इक दरी खरीद ली।
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने, 
और ख़ुशी खरीद ली ।
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सबने ख़रीदा सोना, 
मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी, 
डोरी ख़रीद ली ।
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मेरी एक खवाहिश मुझसे, 
मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने 
अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली ।
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इस ज़माने से सौदा कर, 
एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और, 
शामें खरीद ली।

शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से,
और कुछ कम किये, 
फ़िर सस्ते में ही,
सुकून-ए-ज़िंदगी खरीद ली !

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